भाई का कॉलेज बंद है। ऊधम नहीं मचा रहा लेकिन। बाथरूम के लिए भी लड़ नहीं रहा। कहता है, “दीदी आप ही नहा लो पहले, क्या पता अगला स्नान isolation ward में हो।” बैंक जाते समय और घर आते समय मां दहलीज़ पर ही मिलती हैं। पूजा की थाली लिए नहीं, हाथ में spray लिए। रबी की फसल पे इतना कीटनाशक नहीं छिड़का गया होगा जितना sanitizer वो हम पे छिड़क चुकी हैं। दस्ताने, मास्क और जूते शरीर से उतरते ही दवाओं और मंतर जाप की भेंट चढ़ा दिए जाते हैं। खौलते पानी में Dettol डाल कर बाल्टी घर के बाहर थमा दी जाती है।
आज सुबह बैंक के लिए निकली तो एक चौराहे पर पुलिसकर्मी sanitized लट्ठ घुमाते हुए तेज़ी से आगे बढ़े। लेकिन जनाब अचानक ठिठक गए। उन्हें आभास हुआ की गाड़ी तो कोई स्तनधारी जीव चला रहा है। “लेडीज़ लोग, लेडीज़ लोग है ये तो” कहकर अचंभित हो फेफड़े फाड़ने लगे। स्तनधारी जीव के गले में बैंक का पट्टा देखकर आंखें और भी चौड़ी हो गईं। “मोदीजी दो दो भाषण दिए। एक भी बार नहीं कहे की आप लोग काम कर रहे हैं। कैसे मान लें हम कि बैंक खुले हैं? अख़बार में तो ये और लिखा है कि रविवार आप छुट्टी पर थे। निर्मला जी बोली हैं आप लोग का टच छूट गया है हम लोग से।” उन्हें सदमे से उबारने उनके अधिकारी आगे आए। मैंने मास्क उतारा तो खट पहचान गए। उन्हें पर्सनल लोन दिया हुआ था। “अर्र रेे रेईई फलां ब्रांच की मैनेजर हैं। इन्हें लट्ठ नहीं पासबुक दो अपनी।”
इस देश की अर्थव्यवस्था से ज़्यादा चरमराई और गोबर से ज़्यादा भूरी एक पासबुक पेश की गई। “हेहेहे मैडम ये ज़रा आते टाइम एंट्री करा लेना..और ये क्या 20,50 की फ्रेश गड्डी नहीं आरही क्या आजकल?”
मन तो किया कि पूछ ही डालें, “फ्रेश नोटों का इस मौत के मंजर में क्या कीजिएगा आप?” लेकिन फिर याद आया कि कल को फिर कोई देशभक्त सिपाही इसी चौराहे पे मोदीजी का भाषण दोहराने लगा और बैंक नहीं जाने दिया गया तो हमारी देशभक्ति फिर खतरे में पड़ जाएगी।
राजस्थान में लौैकडाउन पहले से चल रहा है। आजकल बीच सड़क पर गाय के साथ मोर और नीलगाय का आत्मविश्वास भी पुरजोर दिखाई पड़ता है। पीले लाल फूल सड़कों पर बिछे होते हैं, और खेतों में बारिश से रबी फसलों को चुपचाप बचाने की नाकाम कोशिश में कुछ खेतों में महिलाएं नजर आती हैं।
बैंक पहुंच कर समझ आता है कि Einstein एकदम सही था। time-space linear नहीं हैं। हो ही नहीं सकते। जब रेल बस दुकान मकान मंदिर मस्जिद सब बंद हैं, तो कहां से रक्तबीज की तरह ये इतने हाथ आधार कार्ड और पासबुक लिए सामने उगते ही जा रहे हैं। “मैडम हमें देर हो रही है जल्दी करो। कल महाप्रलय आने वाला है। आज ही बता दीजिए 30 साल के लोन में 3 किश्त काटने के बाद क्या ब्याज में कुछ फर्क आया है क्या? लगे हाथ स्टेटमेंट दिलवा दीजिए और ये पासबुक सारे गली वालों का छाप दीजिए। पुलिस आने नहीं दे रही।”
Time-space causality linear नहीं हैं। हो ही नहीं सकते।
Very well written…….an apt satire!
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❤️ thank you mam
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