19.05.2019
जून 2015 से भारतीय स्टेट बैंक में कार्यरत हूँ | पिछले चार वर्षों में चार राज्यों, दस शाखाओं, और जनता के भावातिरेकों से गहरे साक्षात्कार हुए | प्रत्येक कार्यदिवस पर लगभग दो सौ लोगों से मिलती हूँ | फाइलों में या कंप्यूटर स्क्रीन पर नहीं, व्यक्तिगत रूप से | हर वर्ग, हर जाति , हर लिंग, हर उम्र , हर धर्म की जनता के बीच, उनके साथ, उनके भय की, उनके स्वप्नों की, उनके हर्ष-शोक की , उनकी विचारधारा-मानसिकता की, उनके संस्कारों-आदतों की, उनके क्रोध की, उनके आभार की , उनकी भावशून्यता की , उनके सत्य-असत्य की, उनके विलाप, प्रमाद, आह्लाद, हताशा और विश्वास की मैं साक्षी रही हूँ | जितने अनुभव इन सैंतालीस महीनों में भारत के धरातल पर हुए हैं, शायद ही सत्तावन-से-सैंतालीस पर लिखी किताबों को बांचने-रटने से हुए हों |
इन चार वर्षों में देश के उच्च-मध्यम-निम्न वर्गों और जातियों को आर्थिक उत्कृष्टता, धार्मिक संवेदनाओं व राष्ट्रवाद-राष्ट्रदोह के राजनैतिक विवादों से जूझते देखा | बैंक को सशक्तिकरण के ख़्वाब बुनते और थकते देखा | प्रत्येक सोमवार कर्मभूमि को रणभूमि में परिवर्तित होते देखा | प्रत्येक शनिवार युद्ध के सूर्यास्त के साथ स्वयं को अंतहीन प्रश्नों में उलझते देखा |
आप, मैं, हम सब ऋणी हैं | असंख्य, अदृश्य शोणित-स्वेद धाराओं से भारतभूमि प्रतिपल सिंचित है | यह राष्ट्र एक महाकाव्य, एक महासमुद्र की अपार शक्ति, सामर्थ्य व आत्मविश्वास को समेटे है | अनगिनत भूचालों, कालकूटों और ताण्डवों के बावजूद आज विश्व-मानचित्र पर सुशोभित है | यह राष्ट्र किसी एक राजनैतिक विचारधारा, राजनेता, कथित-बुद्धिजीवी और कथित-राष्ट्रभक्त से न बना है, न बिगड़ा है | भारत रहेगा | दिनकर का समर भी सदैव रहेगा, जिसमें समय निरंतर तटस्थता के पाप लिखेगा | बदलेगी तो बस आपकी, हमारी भूमिका | इन दिनों सत्य-असत्य शाश्वत नहीं, सूर्य की स्थिति से ज़्यादा परिवर्तनशील हैं | मुद्दों को स्वतंत्र रूप से परखें, अपने कर्म को पूजें, किसी व्यक्ति-विशेष को अपना देवता या शत्रु मान कर हर सामाजिक-आर्थिक-धार्मिक घटना को संकुचित चश्मे से परखना ही एक नागरिक की कृतघ्नता का परिचायक है |
बाकी जीवन के रंगमंच पर जो नाटकीयता है , सो है |